Wednesday, September 8, 2010

देवी लक्ष्मी को करें प्रसन्न, पाएं सारे सुख



-डॉ. अशोक प्रियरंजन
आधुनिक जीवन में धन संपदा सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो गई है। प्रत्येक व्यक्ति भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति के लिए अधिक से अधिक धन अर्जित करना चाहता है। कई बार पर्याप्त श्रम करने केबाद भी देवी लक्ष्मी की कृपा मनुष्य पर नहीं हो पाती है। ऐसे में जरूरी है कि मनुष्य लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कुछ उपाय करे। भारतीय संस्कृति में तो लक्ष्मी को प्रसन्न करने केकुछ उपाय तो परंपरा के रूप में सदियों से विद्यमान हैं लेकिन अब अनेक व्यस्तताओं अथवा दूसरे कारणों से ये परंपराएं खंडित भी होती जा रही हैं। इन परंपराओं को जीवित रखा जाए तो लक्ष्मी बड़ी आसानी से प्रसन्न होती हैं। भारतीय समाज में सूर्यास्त के समय पूजाघर में दीपक जलाने की परंपरा है, वस्तुत: ऐसा करने लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। पूजाघर में एक लकड़ी के पटरे पर कोरे लाल वस्त्र पर देवी महालक्ष्मी, भगवान विष्णु, भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें और नित्य उसके समक्ष दीपक जलाएं। प्रज्ज्वलित दीपक को जमीन पर नहीं रखना चाहिए बल्कि उसे दीवट अथवा अक्षत पर रखना चाहिए। हिंदूओं के घरों में तुलसी का पौधा लगाने की भी परंपरा है। दरअसल, रोजाना घर में तुलसी के समक्ष भी दीपक जलाने से घर की उन्नति होती है। पत्नी को गृहलक्ष्मी कहा गया है। पत्नी को पूर्ण सम्मान और आदर देने से भी देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। साफ सुथरा घर हो और उसमें रहने वाले स्वच्छ वस्त्र धारण करते हों, तभी लक्ष्मी का आगमन होता है। देवी लक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुईं। समुद्र से उत्पन्न वस्तुएं उनके सहोदर के समान हैं और उन्हें प्रिय हैं। दक्षिणावर्ती शंख, मोती शंख, गोमती चक्र आदि वस्तुएं पूजाघर में रखने से भी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। भगवान विष्ण लक्ष्मीपति हैं। अत: लक्ष्मी के घर में निवास के लिए भगवान विष्णु की स्थापना आराधना आवश्यक है। भगवान विष्णु की उपस्थिति के प्रतीक हैं शंख और शालिग्राम। इसके साथ ही भगवान गणेश की आराधना से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं।
कमल के आसन पर विराजमन लक्ष्मी की नियमित आराधना गृहस्थ के लिए सर्वाधिक फलदायी होती है। लक्ष्मी की आराधना 'ú कमलवासिन्यै नम:Ó मंत्र से करनी अधिक लाभकारी है। इस मंत्र के निरंतर जाप से लक्ष्मी स्थिर होती है। धन का आगमन होने से साथ ही बचत भी होती है और जीवन में आगे बढऩे के अवसर मिलते हैं।
भगवान कुबेर धन के राजा हैं। मंत्र साधना से भगवान कुबेर को प्रसन्न करके धन संपदा की प्राप्ति संभव है। कुबेर का मंत्र है- ऊँ श्रीं, ऊँ ह्रीं श्रीं, ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम: -जिसे दक्षिण की और मुख करके साधने की परंपरा है। इन मंत्रों और उपायों के साथ ही मनुष्य को कर्मक्षेत्र में सक्रिय रहते हुए पर्याप्त परिश्रम करना चाहिए तभी जीवन में प्रगति के द्वार खुलते हैं और घर में लक्ष्मी का वास होता है।

Monday, June 28, 2010

पति के बाईं और बैठें, प्रेम बढ़ेगा


-डॉ. अशोक प्रियरंजन
भारतीय संस्कृति में पत्नी को वामांगी भी कहा गया है। यही वजह है कि विवाह की रस्म पूरी होने केपहले तक लड़की को दाईं तरफ बैठाया जाता है। विवाह केफेरे लेने के बाद सिंदूर लगाने की रस्म के समय कन्या को दाईं तरफ बैठाया जाता है और उसके बाद फिर वह बायीं ओर बैठती है, उस वक्त वह वामांगी कहलाने लगती है। इसकेपीछे भी एक वैज्ञानिक कारण है। मनुष्य का हृदय बाईं तरफ होता है। प्रेम की भावनाएं हृदय में ही जन्म लेती हैं और वहीं विराजमान रहती हैं। मनुष्य जिससे सर्वाधिक प्रेम करता है, वह उसके बाईं ओर बैठे तो हृदय उसके अधिक निकट होगा और प्रेम बढ़ेगा। सांसारिक जीवन में पत्नी प्रेम की संवाहक होती है। मान्यता है कि विवाहोपरांत मनुष्य अपने हृदय में पत्नी को बसा लेता है, इसलिए बाईं ओर उसका स्थान सुरक्षित हो जाता है। विवाह के दौरान विविध मंत्रों और रस्मों का उद्देश्य पति-पत्नी के प्रेम को प्रगाढ़ करना भी होता है। भोजन करते समय, सुंदर वस्त्र पहनने पर और बुजुर्गों, संतों, सन्यासियों से आशीर्वाद लेते समय पत्नी को पति केबाईं तरफ ही रहना चाहिए। शुभ कार्यों, मंदिर में देवी देवताओं की मूर्ति के समक्ष नमन, पूजा-अर्चना करते समय भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विवाहिता पति के बाईं ओर ही स्थान ग्रहण करे। हालांकि कुछ अवसरों को इससे मुक्त रखा गया है।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)

Wednesday, June 16, 2010

सिंदूर करता है मंगल को प्रसन्न


-डॉ. अशोक प्रियरंजन
भारतीय हिंदू समाज में ग्रहों की शांति केअनेक उपायों को जीवन शैली में शामिल कर लिया गया है। उन्हीं में से एक है, महिलाओं का सिंदूर लगाना। सभी हिंदू विवाहित महिलाएं सिंदूर लगाती हैं, लेकिन बहुत कम महिलाओं को इसकेलगाने की सही वजह मालूम होगी। अधिकतर महिलाएं इसे सुहाग चिह्नï के रूप में अनिवार्य मानती हैं। सिंदूर ही नहीं शुभ अवसरों पर लाल रंग की साड़ी या चुनरी, महावर आदि का प्रयोग भी किया जाता रहा है। आज भी महिलाएं इन परंपराओं का पालन कर रही हैं, लेकिन लाल रंग से सजने-संवरने के कारणों का उन्हें ज्ञान नहीं है। दरअसल, महिलाओं में रक्त के क्षरण की समस्या ज्यादा होती हैं। मासिक धर्म के चलते कई बार महिलाएं रक्त अल्पता और हीमोग्लोबिन की कमी का शिकार हो जाती हैं। रक्त का कारक मंगल ग्रह है। मंगल ग्रह की कृपा से रक्त विकारों का निवारण संभव है। मंगल का प्रिय रंग लाल है। इसीलिए प्राचीन काल से महिलाओं को लाल रंग केवस्त्र और श्रंृगार में लाल रंग का अधिकाधिक प्रयोग करने पर जोर दिया गया है। लाल रंग का सिंदूर भी मंगल को प्रसन्न करता है। मंगल की कृपा हो जाए तो महिलाएं रक्त विकारों से बची रह सकती हैं। ( फोटो गूगल सर्च से साभार )

Friday, May 28, 2010

साहसी होते हैं मूलांक एक के जातक

डॉ. अशोक प्रियरंजन
अंकशास्त्र के अनुसार किसी भी माह के ०१, १०, १९ अथवा २८ तारीख को जन्म लेने वाले जातक का मूलांक एक होता है। एक अंक सूर्य राशि का है। सूर्य सभी ग्रहों का राजा है। इसी के चलते इस दिन जन्म लेने वाले जातक राजसी प्रवृत्ति के होते हैं और उन्हें अपने ऊपर किसी का शासन पसंद नहीं होता। वह चाहते हैं कि सारे फैसले स्वयं करें। मूलांक एक वाले जातक महत्वाकांक्षी, साहसी और जिज्ञासु होते हैं और इनकी मानसिक शक्ति बड़ी प्रबल होती है। सूर्य पूर्व दिशा का स्वामी है। इसी कारण पूर्व दिशा सदैव मूलांक एक वालों के लिए सबसे भाग्यशाली होती है। पूर्व दिशा में स्थित मकान, बैठक आदि अन्य की अपेक्षा अधिक सुखदायक सिद्ध होते हैं।
मूलांक १ साकार ब्रह्म का प्रतीक है और अनेक रहस्यों को अपने अंदर आत्मसात किए हुए है। इस रहस्यवादी प्रवृत्ति की छाया जातक के जीवन पर भी रहती है। इसी के कारण मूलांक एक वालों को समझ पाना बड़ा मुश्किल होता है। इस दिन जन्म लेने वाले आत्मविश्वास से लबरेज होते हंै। इसी के कारण वे सहज ही समाज में लोकप्रियता हासिल कर लेते हैं। इनके अंदर व्यापक जनसमूह को अपने आत्मविश्वास से प्रभावित करने की क्षमता होती है।
आशावादी प्रवृत्ति की होने केकारण जीवन के प्रति इनका दृष्टिकोण बड़ा सकारात्मक होता है। इसी के चलते विषम परिस्थितियों का भी ये बड़ी सहजता से सामना करने में समर्थ हैं। जीवन को जीने की उत्कट ललक इनके अंंदर विद्यमान होती है।
सूर्य का प्रभाव यश प्रदान करने में भी सहायक होता है। सूर्य सभी ग्रहों पर भारी रहता है। उसके तेज के आगे अन्य ग्रहों का प्रभाव क्षीण हो जाता है। सूर्य के इसी गुण के चलते मूलांक एक वाले अपने विरोधियों पर हमेशा भारी रहते हैं। परिवार में भी इनकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती है। सूर्य सभी ग्रहों में प्रमुख है। इस नाते मूलांक एक का जातक अपनी मेहनत और लगन से समाज में नेतृत्व करने वाला पद प्राप्त कर सकता है। यह प्रशासनिक अधिकारी भी बन सकते हैं। यह स्वभाव में गंभीरता और स्थिरता भी लाता है।
दूसरी ओर, सूर्य क्रोधी और पाप ग्रह है। यह छोटी-छोटी बात पर स्वभाव में तुरंत उग्रता उत्पन्न कर देता है। अत: क्रोध मूलांक एक जातक के स्वभाव में रहता है। यह जिद्दी और अहंकारी भी होते हैं। अशुभ स्थिति में सूर्य स्वभाव को कठोर बना देता है अर्थात ऐसी स्थिति में कोई कितना ही प्रिय क्यों न हो उसके प्रति भी मन में दया का भाव खत्म हो जाता है। मूलांक एक के जातकों को अधिक सर्दी और अधिक गर्मी सदैव परेशान करती है। सूर्य मंदा होने पर शारीरिक दुर्बलता, नेत्र संबंधी विकार, मानसिक अशांति, हृदय रोग दे सकता है। इसके साथ ही उदर रोग भी कभी परेशान कर सकते हैं।
जीवन में कष्ट होने पर मूलांक एक के जातकों को प्रात:काल में सूर्यदेव के दर्शन करने चाहिए, जल चढ़ाना चाहिए। ऊं घृणि सूर्याय नम: मंत्र का जाप लाभदायक होता है। गायत्री मंत्र का जाप भी शुभ प्रभाव देता है। रविवार का व्रत भी रखा जा सकता है।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)