
-डॉ. अशोक प्रियरंजन
भारतीय संस्कृति में पत्नी को वामांगी भी कहा गया है। यही वजह है कि विवाह की रस्म पूरी होने केपहले तक लड़की को दाईं तरफ बैठाया जाता है। विवाह केफेरे लेने के बाद सिंदूर लगाने की रस्म के समय कन्या को दाईं तरफ बैठाया जाता है और उसके बाद फिर वह बायीं ओर बैठती है, उस वक्त वह वामांगी कहलाने लगती है। इसकेपीछे भी एक वैज्ञानिक कारण है। मनुष्य का हृदय बाईं तरफ होता है। प्रेम की भावनाएं हृदय में ही जन्म लेती हैं और वहीं विराजमान रहती हैं। मनुष्य जिससे सर्वाधिक प्रेम करता है, वह उसके बाईं ओर बैठे तो हृदय उसके अधिक निकट होगा और प्रेम बढ़ेगा। सांसारिक जीवन में पत्नी प्रेम की संवाहक होती है। मान्यता है कि विवाहोपरांत मनुष्य अपने हृदय में पत्नी को बसा लेता है, इसलिए बाईं ओर उसका स्थान सुरक्षित हो जाता है। विवाह के दौरान विविध मंत्रों और रस्मों का उद्देश्य पति-पत्नी के प्रेम को प्रगाढ़ करना भी होता है। भोजन करते समय, सुंदर वस्त्र पहनने पर और बुजुर्गों, संतों, सन्यासियों से आशीर्वाद लेते समय पत्नी को पति केबाईं तरफ ही रहना चाहिए। शुभ कार्यों, मंदिर में देवी देवताओं की मूर्ति के समक्ष नमन, पूजा-अर्चना करते समय भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विवाहिता पति के बाईं ओर ही स्थान ग्रहण करे। हालांकि कुछ अवसरों को इससे मुक्त रखा गया है।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)